वैदिक पूजाओं का महत्व

धार्मिक परंपराओं में देव पूजा, उपासना, जप, ध्यान, स्नान से हर सुख को पाने के उपाय बताए गए हैं। यह धार्मिक कर्म परेशानियों, चिंताओं और कष्टों में अशांत मन को बल और सुख देते हैं। ऐसे सुखों और खुशियों का आनंद दोगुना तब हो जाता है, जब सुख और आनंद व्यक्ति और परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि उसमें समाज या प्रकृति भी शामिल हो जाए।

पूजा अथवा पूजन किसी भगवान को प्रसन्न करने हेतु हमारे द्वारा उनका अभिवादन होता है। पूजा दैनिक जीवन का शांतिपूर्ण तथा महत्वपूर्ण कार्य है। यहाँ भगवान को पुष्प आदि समर्पित किये जाते हैं जिनके लिये कई पुराणों से छाँटे गए श्लोकों का उपयोग किया जाता है। वैदिक श्लोकों का उपयोग किसी बड़े कार्य जैसे यज्ञ आदि की पूजा में ब्राह्मण द्वारा होता है। सर्वप्रथम प्रथमपूज्यनीय गणेश की पूजा की जाती है।

शास्त्रों में ऐसा ही एक धार्मिक कर्म बताया गया है – हवन। जिसका शुभ प्रभाव न केवल व्यक्ति बल्कि प्रकृति को भी लाभ ही पहुंचाता है। ग्रंथों में अनेक तरह के यज्ञ और हवन बताए गए हैं। विज्ञान भी हवन और यज्ञ के दौरान बोले जाने वाले मंत्र, प्रज्जवलित होने वाली अग्रि और धुंए से होने वाले प्राकृतिक लाभ की पुष्टि करता है।

पूजन के मुख्य छ: प्रकार है--

पंचोपचार (5 प्रकार)
दशोपचार (10 प्रकार)
षोडशोपचार (16 प्रकार)
द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार)
चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार)
एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार)

वैदिक पूजा

हमारे जीवन में जो भी अच्छा या बुरा हो रहा होता है उसके पिछे ग्रहों की चाल एक बड़ा कारण है। इन तमाम उतार चढ़ावों को रोकने के लिये और क्रोधित ग्रह को शांत करने के लिये धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों में नव ग्रह यानि जीवन को प्रभावित करने वाले समस्त 9 ग्रहों की पूजा करने का विधान है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राशियां 12 होती हैं। प्रत्येक राशि में प्रत्येक ग्रह अपनी गति से प्रवेश करते हैं। इसे ग्रहों की चाल कहा जाता है एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने पर भी अन्य राशियों पर उसका सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक जातक में प्रत्येक ग्रह के गुण भी पाये जाते हैं। जैसे सूर्य से स्वास्थ्य, चंद्र से सफलता तो मंगल सम्रद्धि प्रदान करता है। इसी तरह से हर ग्रह के अपने सूचक हैं जो हमारे जीवन को कहीं ना कहीं प्रभावित करते हैं। मंत्रोच्चारण के जरिये इन ग्रहों को साधा जाता है और उनकी सही स्थापना की जाती है। कमजोर ग्रहों का बल प्राप्त करने के लिये कुछ विशेष उपाय भी ज्योतिषाचार्यों द्वारा सुझाये जाते हैं। इस प्रक्रिया को नवग्रह पूजा या नवग्रह पूजन कहा जाता है।
धन, संपत्ति अर्थात पैसा वर्तमान में मनुष्य की सबसे बड़ी जरुरत है। पैसे से ही मनुष्य के जीवन की तमाम भौतिक जरुरतें पूरी होती हैं। धन, संपत्ती, समृद्धि का एक नाम लक्ष्मी भी है। लक्ष्मी जो कि भगवान विष्णु की पत्नी हैं। मान्यता है कि मां लक्ष्मी की कृपा से ही घर में धन, संपत्ती समृद्धि आती है। जिस घर में मां लक्ष्मी का वास नहीं होता वहां दरिद्रता घर कर लेती है। इसलिये मां लक्ष्मी का प्रसन्न होना बहुत जरुरी माना जाता है और उन्हें प्रसन्न करने के लिये की जाती है मां लक्ष्मी की पूजा।
सत्यनारायण कथा सनातन (हिंदू) धर्म के अनुयायियों में लगभग पूरे भारतवर्ष में प्रचलित है। सत्यनारायण भगवान विष्णु को ही कहा जाता है भगवान विष्णु जो कि समस्त जग के पालनहार माने जाते हैं। लोगों की मान्यता है कि भगवान सत्यनारायण का व्रत रखने उनकी कथा सुनने से मनुष्य मात्र के सभी कष्ट मिट जाते हैं। सत्यनारायण व्रतकथा का उल्लेख स्कंदपुराण के रेवाखंड में मिलता है। –
माँ दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है। दुर्गा जी को प्रसन्न करने के लिए जिस यज्ञ विधि को पूर्ण किया जाता है उसे सतत चंडी यज्ञ बोला जाता है। नवचंडी यज्ञ को सनातन धर्म में बेहद शक्तिशाली वर्णित किया गया है। इस यज्ञ से बिगड़े हुए ग्रहों की स्थिति को सही किया जा सकता है और सौभाग्य इस विधि के बाद आपका साथ देने लगता है। इस यज्ञ के बाद मनुष्य खुद को एक आनंदित वातावरण में महसूस कर सकता है। वेदों में इसकी महिमा के बारे में यहाँ तक बोला है कि सतत चंडी यज्ञ के बाद आपके दुश्मन आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। इस यज्ञ को गणेशजी, भगवान शिव, नव ग्रह, और नव दुर्गा (देवी) को समर्पित करने से मनुष्य जीवन धन्य होता है।
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